बीज व किस्में

बैंगन की ग्राफ्टिंग क्या है और क्यों जरूरी है?

बिल्कुल! यहां आपको बैंगन की ग्राफ्टिंग (कलम बंधन) की A to Z पूरी जानकारी हिंदी में दी जा रही है, जिसे पढ़कर आप सफलतापूर्वक इसकी खेती शुरू कर सकते हैं।

बैंगन की ग्राफ्टिंग क्या है और क्यों जरूरी है?

ग्राफ्टिंग एक ऐसी तकनीक है जिसमें एक पौधे के तने (जिसे ‘सायन’ कहते हैं) को दूसरे पौधे की जड़ (जिसे ‘रूटस्टॉक’ कहते हैं) पर जोड़ा जाता है। बैंगन की ग्राफ्टिंग मुख्यतः निम्नलिखित कारणों से की जाती है:

  1. मृदा जनित रोगों का प्रतिरोध: यह ग्राफ्टिंग का सबसे बड़ा फायदा है। रूटस्टॉक (जड़ वाला पौधा) बैंगन के बैक्टीरियल विल्ट और फ्यूजेरियम विल्ट जैसी बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी होता है।

  2. अधिक उपज: ग्राफ्टेड पौधे स्वस्थ और मजबूत होते हैं, जिससे फलों की संख्या और आकार दोनों में वृद्धि होती है।

  3. पानी और उर्वरक का बेहतर उपयोग: मजबूत जड़ प्रणाली के कारण पौधा मिट्टी से पोषक तत्व और पानी अधिक कुशलता से ले पाता है।

  4. लंबी फसल अवधि: ग्राफ्टेड पौधे जल्दी नहीं मरते, जिससे आप लंबे समय तक फल तोड़ सकते हैं।


ग्राफ्टिंग की तैयारी: आवश्यक सामग्री (Essential Materials)

1. रूटस्टॉक (जड़ वाला पौधा) कौन सा इस्तेमाल करें?

यह ग्राफ्टिंग का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। आपको बीज विशेष दुकान से ही प्रमाणित रूटस्टॉक के बीज खरीदने होंगे। आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले रूटस्टॉक हैं:

  • सोलेनम टोरवम (Solanum torvum): यह सबसे लोकप्रिय और प्रभावी रूटस्टॉक है। यह विल्ट रोग के प्रति अत्यधिक सहनशील है।

  • सोलेनम सिसम्ब्रिफोलियम (Solanum sisymbriifolium): यह नेमाटोड (रूट-नॉट) के खिलाफ भी प्रतिरोधक क्षमता रखता है।

  • विशेष संकर किस्में: बीज कंपनियां एग्रोबैक्टेरियम ट्यूमफैसिएंस के खिलाफ प्रतिरोधी रूटस्टॉक भी बेचती हैं, जैसे कुछ किस्में।

रूटस्टॉक के बीज कहां मिलेंगे?
आपको इन्हें ऑनलाइन या बड़े बीज विक्रेताओं से खरीदना होगा। कुछ प्रमुख कंपनियां हैं: नामधारी, महिंद्रा, रिजेंट, सिंजेंटा, नुनहीम्स आदि। ऑनलाइन “Solanum torvum seeds” या “बैंगन ग्राफ्टिंग रूटस्टॉक बीज” सर्च करें।

2. सायन (SCION) – कौन सी बैंगन की किस्म चुनें?

सायन वह हिस्सा है जिससे आपको फल चाहिए। आप कोई भी उन्नत या संकर (Hybrid) किस्म चुन सकते हैं जो आपके क्षेत्र के लिए अनुशंसित हो। जैसे:

  • पूसा ज्योति

  • पूसा उत्कर्ष

  • पूसा अनमोल

  • अर्का कुसुमकर

  • या कोई भी स्थानीय हाइब्रिड किस्म।

3. अन्य सामग्री:

  • कलम बांधने वाला क्लिप (Grafting Clip): यह छोटी सी पारदर्शी या अर्ध-पारदर्शी प्लास्टिक की क्लिप होती है जो दोनों हिस्सों को जोड़े रखती है। यह ऑनलाइन या नर्सरी सप्लाई स्टोर पर मिल जाती है।

  • तेज ब्लेड या ग्राफ्टिंग चाकू: ब्लेड नया और तेज होना चाहिए ताकि कट साफ और एकदम सीधा लगे।

  • स्पिरिट/अल्कोहल: ब्लेड को कीटाणुरहित करने के लिए, ताकि कटे हुए स्थान पर संक्रमण न फैले।

  • पॉलीहाउस या शेडनेट: ग्राफ्टिंग के बाद पौधों को सीधी धूप, तेज हवा और कीटों से बचाने के लिए। इसे “हेलिंग चैंबर” भी कहते हैं।

  • प्रोपेगेशन ट्रे या पॉट: बीज बोने के लिए।


ग्राफ्टिंग की विधि (Step-by-Step Guide)

चरण 1: बीजों की बुवाई का समय

  • रूटस्टॉक के बीज, सायन के बीजों से 5-7 दिन पहले बोएं। ऐसा इसलिए क्योंकि सोलेनम टोरवम के बीज अंकुरने में थोड़ा अधिक समय लेते हैं और उनकी ग्रोथ शुरुआत में धीमी होती है। लक्ष्य यह है कि ग्राफ्टिंग के समय दोनों पौधों का तना लगभग एक जैसा मोटाई (लगभग 2-3 मिमी) का हो।

चरण 2: ग्राफ्टिंग का सही समय और पौधे की स्थिति

  • ग्राफ्टिंग तब करें जब पौधों में 3-4 असली पत्तियां आ चुकी हों। यह आमतौर पर बुवाई के 25-30 दिन बाद का समय होता है।

  • पौधे स्वस्थ और रोगमुक्त होने चाहिए।

  • ग्राफ्टिंग का काम छायादार जगह पर करें, तेज धूप में नहीं।

चरण 3: ग्राफ्टिंग की प्रक्रिया (सबसे आसान तरीका – क्लिप विधि)

  1. पौधों को पानी दें: ग्राफ्टिंग से एक दिन पहले पौधों को अच्छी तरह पानी दें ताकि वे हाइड्रेटेड रहें।

  2. रूटस्टॉक को काटें: रूटस्टॉक के पौधे को दो पत्तियों के ऊपर से, एक तिरछा और साफ कट (45 डिग्री के कोण पर) लगाकर काटें।

  3. सायन को काटें: सायन के पौधे को भी उसी कोण पर काटें। ध्यान रहे, दोनों के कट की लंबाई और कोण एक जैसा होना चाहिए।

  4. जोड़ना (Grafting): अब दोनों कटे हुए हिस्सों (रूटस्टॉक और सायन) को आपस में जोड़ दें। जोड़ पर जोर न डालें, बस हल्के से सटा दें।

  5. क्लिप लगाना: इस जोड़ पर ग्राफ्टिंग क्लिप को चढ़ा दें। क्लिप दोनों हिस्सों को कसकर पकड़े रखेगी।

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चरण 4: ग्राफ्टिंग के बाद की देखभाल (Heeling-in Period)

यह सबसे नाजुक और महत्वपूर्ण चरण है। ग्राफ्टिंग के बाद के 7-10 दिन पौधों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।

  • छाया और उच्च आर्द्रता: ग्राफ्टेड पौधों को तुरंत एक ऐसी जगह रखें जहां सीधी धूप न आती हो और हवा में नमी अधिक हो (लगभग 90-95%)। इसे हेलिंग चैंबर कहते हैं। आप इन्हें शेडनेट या पॉलीहाउस के अंदर रख सकते हैं और ऊपर से पॉलीथीन से ढक सकते हैं।

  • पानी का छिड़काव: इन दिनों में मिट्टी में पानी डालने के बजाय, हल्का पानी का छिड़काव करके नमी बनाए रखें।

  • तापमान: इष्टतम तापमान 22-28°C के बीच रखने का प्रयास करें।

  • क्लिप हटाना: लगभग 7-10 दिन बाद, जब आप देखेंगे कि सायन में नई पत्तियां और बढ़वार शुरू हो गई है, तो क्लिप को हटा सकते हैं।


महत्वपूर्ण सावधानियां (Precautions)

  1. सफाई का विशेष ध्यान रखें: ब्लेड को हर कट से पहले अल्कोहल से साफ करें ताकि बीमारी न फैले।

  2. कट साफ और एक बार में लगे: कट लगाते समय हिचकिचाएं नहीं, एक ही बार में साफ कट लगाना जरूरी है।

  3. जोड़ पर पानी न लगने दें: हेलिंग चैंबर में पानी का छिड़काव करें, लेकिन सीधे जोड़ पर पानी न पड़ने दें।

  4. कमजोर पौधों को अलग कर दें: जो पौधे ग्राफ्टिंग के बाद मुरझा जाएं या सूख जाएं, उन्हें तुरंत हटा दें।

  5. कीटों से बचाव: हेलिंग चैंबर को कीटों से बचाकर रखें, क्योंकि नए पौधे बहुत नाजुक होते हैं।


ग्राफ्टिंग के बाद खेत में रोपाई और देखभाल

  • जब ग्राफ्टेड पौधे मजबूत हो जाएं और नई पत्तियां निकल आएं (लगभग 10-15 दिन बाद), तो उन्हें खेत में लगाने से पहले 3-4 दिनों के लिए धूप में रखकर “हार्डन” (अभ्यस्त) करें।

  • खेत में रोपाई करते समय ध्यान रखें कि ग्राफ्टिंग का जोड़ जमीन से ऊपर ही रहे। अगर जोड़ मिट्टी के अंदर चला गया तो सायन अपनी जड़ें निकाल सकता है और ग्राफ्टिंग का सारा फायदा खत्म हो जाएगा।

  • बाकी देखभाल (खाद, पानी, निराई-गुड़ाई) सामान्य बैंगन की तरह ही करें।


दवाइयां और उर्वरक प्रबंधन

ग्राफ्टेड पौधों में रोग कम लगते हैं, फिर भी सावधानी जरूरी है।

  • रोगों से बचाव:

    • ब्लू कॉपर फंगीसाइड: डैम्पिंग ऑफ और बैक्टीरियल समस्याओं से बचाव के लिए।

    • कार्बेंडाजिम: फंगल इन्फेक्शन के लिए।

    • ग्राफ्टिंग से पहले पौधों पर एक बार फफूंदनाशक का छिड़काव करना अच्छा रहता है।

  • कीटों से बचाव:

    • नीम का तेल: प्रारंभिक अवस्था में।

    • इमिडाक्लोप्रिड: थ्रिप्स और एफिड्स के लिए (कम मात्रा में प्रयोग करें)।

  • उर्वरक:

    • ग्राफ्टेड पौधों की जड़ें मजबूत होती हैं, इसलिए वे खाद का बेहतर उपयोग करते हैं। जैविक खाद (गोबर की खाद, वर्मीकम्पोस्ट) का भरपूर प्रयोग करें।

    • रासायनिक खाद (NPK) की मात्रा सामान्य बैंगन की तुलना में 20-25% कम की जा सकती है, लेकिन मिट्टी की जांच के आधार पर ही खाद दें।

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